Bhopal me kaha.....
पहले थ्रीसम की कहानी
कितने महीनों की मान मनौव्वल
कर तुमने मनवाया
तरह तरह के क़िस्से दे कर
मन राज़ी करवाया
उन क़िस्सों में उलझ उलझ
मैं खुद को थी बहकाती
मन में हाँ कहती थी तुझसे
मुँह से न कह पाती
फिर आख़िर एक दिन मैंने ही
छोड़ लाज का आँचल
कहा बुला लो आज किसी को
जो कर दे मुझको घायल
भूल न पाऊँ उस रैना को जब
तुमने मुझे कहा था
सपनों वाली रात सजेगी आज
तुम तैयारी रखना
संग तुम्हारे वो आया था
बाँका छैल छबीला
अँखियों में जिसकी जादू था
कैसा बदन गठीला
बातों का वो जादूगर था
मोह लिया मन जिसने
होंठों को कितने हौले से
चूम लिया था उसने
लाज से दुहरी हो कर मैं
होती थी पानी पानी
हर धड़कन की हसरत में
नई थी एक कहानी
सामने तेरे उसने बालम
चोली मेरी खोली
मेरी चूच्ची को मींज मींज
हौले से साड़ी खोली
हर पुर्ज़े पर तन के मेरे
होंठ से उसने चूमा
उचक उचक के मदहोशी में
मैंने भी उसका चूमा
दोनों हाँथों से उसने फिर
अलग किया जाँघों को
बुर मेरी थी पानी पानी
चाट रहा था जिसको
पूरी जीभ घुसी थी अंदर
मैं तड़पी जाती थी
हाँथ तुम्हारे हाँथों में था
तुमको चूमी जाती थी
संकेत तुम्हारा पाकर मैंने
खींच लिया था उसका
हाँथों में उसका मूसल लेकर
चूम लिया था उसको
चूस चूस कर उसका लौड़ा
लाल किया था मैंने
मोटा तगड़ा मुगदर जैसा
बना दिया था मैंने
आँखों में चमक रही थी खुशियां
मुझसे ज़्यादा तो तेरी
रात स्वप्न की तुझे मिली थीं
बाँट बदन को मेरी
फिर पा के अनुमति तुम्हारी
उसने जब था पेला
लोहे का सरिया मानो जैसे
मैंने था कोई झेला
फाड़ के मेरी चूत धँसा वो
धीरे धीरे अंदर
बुर में पानी इतना आया
मानो हो कोई समुंदर
चुदी चुदाई चूत मेरी थी
जैसे अभी कुँवारी
इतने गहरे में घुसी न थी
अबतक तेरी गाड़ी
झटके उसके ताकतवर थे
झूल रही थी जिस पे
दर्द वो कितना प्यारा सा था
चीख रही थी जिस में
तुम भी बैठ गए थे उस पल
आ चेहरे पर मेरे
चाट रही थी गाँड़ तुम्हारा
तुम थे चूच्ची को भींचे
कितनी देरे झुलाया उसने
लौंड़े पर वो झूला
फिर उसने खींच लंड को
कुतिया मुझे बनाया
मैं रंडी थी आज लगा यूँ
जब मैंने मुस्काया
खींच खींच के बाल मेरे
वो फट फट मारे झटके
चूतड़ मेरी लाल लाल
जाँघों से टकरा के उसके
फिर उसने खींच लिया
मुझको अपने ऊपर
वो लेटा था बिस्तर पर
मैं उसके लौंड़े के ऊपर
तुमने कहा फिर कानों में
रानी है तेरी बारी
उछल उछल के चोदो अब
याद दिला दो नानी
मैं भी दुगुने जोश में आकर
चोद रही थी उसको
वो भी हैरत में डूबा सा
देख रहा था मुझको
झाड़ के मुझको तीन बार
वो था अब भी मैदां में
रण जैसा कुछ आज ठना था
बुर में और लौड़े में
फिर मैंने चाल चली एक
वो ऐसे चकराया
गाँड़ पे अपनी लंड लगा कर
एक झटका लगाया
दर्द तो ऐसा जागा कि प्राण
गया हो मेरा
पर मैं रंडी बन बैठी थी
दाँव था मेरा तगड़ा
कुछ पल में उसने छोड़ा
अपना लावा गाढ़ा
मुस्काई थी गाँड़ मेरी
पा के लंड वो तगड़ा
मैं उतरी जब उससे तब
तुमने गले लगाया
चूम के तुमने मेरा माथा
मेरा मान बढाया
नित् ऐसी रैना देना
यौवन ही तो है जीवन का
सबसे अनुपम गहना
सबको मिले तुम्हारे जैसा
साथी मेरे सजना
हर जन्मों में बस मेरे तुम
मेरे बन के रहना
©
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